सूने चौखटे शीर्षक: सुने चौकाटे उपशीर्षक: याद ों, अके लेपन और बदलाव के बारे में एक कहानी लेखक: सवेश्वर दयाल सक्सेना लेखक के बारे में: सर्वेश्वर दयाल सक्सेना का जन्म 15 ससतोंबर 1927 क उत्तर प्रदेश के बस्ती शहर में हुआ था। उन् ोंने अपनी सशक्षा बनारस सहोंदू सवश्वसवद्यालय और इलाहाबाद सवश्वसवद्यालय से प्राप्त की। आज उन्ें एक महत्वपूर्ण राजनीसतक कसव माना जाता है। उन् ोंने अपनी कसवता सोंग्रह "खुसटय ों पर टोंगे ल ग" के सलए सासहत्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त सकया। उनकी प्रससद्ध कहानी "बकरी" (सजसका अथण है "बसल का बकरा") क एम.एस. सत्यु द्वारा कन्नड़ में 'kuri.com' के रूप में रूपाोंतररत सकया गया है। यह नाटक कई बार मोंसचत सकया गया है, सवशेष रूप से आपातकाल (1975–77) के दौरान, जब इसे एक राजनीसतक व्योंग्य के रूप में प्रस्तुत सकया गया था। इसे एक ल क नाटक के रूप में भी प्रस्तुत सकया गया है। उनके अन्य प्रससद्ध नाटक ों में "लाख की नाक", "हवालात" और "भौों भौों खौों खौों" शासमल हैं। उन् ोंने "मुक्ति की आकाोंक्षा" नामक रचना भी सलखी, ज उस समय स्वतोंत्रता की आवश्यकता क दशाणती है।.
उनकी एक कसवता क ससद्धाथण प्रताप ससोंह द्वारा "अपनी सबसटया के सलए एक कसवता" नामक एसनमेशन शॉटण में रूपाोंतररत सकया गया है। उन् ोंने "शाम एक सकसान" भी सलखा। उन् ोंने बच् ों के सलए कई कसवताएों सलखीों, सजनमें "इब्न बतूता का जूता" सबसे ल कसप्रय है। वे बच् ों की पसत्रका "पराग" के सोंपादक भी रहे। पररचय : "सूने चौखटे" एक कहानी है ज याद ों, अके लेपन और समय के प्रवाह के इदण-सगदण घूमती है। मुख्य पात्र अपने पुराने घर लौटता है, ज कभी खुसशय ों और पाररवाररक याद ों से भरा हुआ था। अब वह घर, उसके कमरे और चौखटे खाली और वीरान नज़र आते हैं। यह कहानी सदखाती है सक समय के साथ सब कु छ बदल जाता है—ररश्ते, ल ग और जीवन की पररक्तथथसतयााँ। सूने चौखटे के वल भौसतक खालीपन का प्रतीक नहीों हैं, बक्ति ख ई हुई याद ों और जीवन की अक्तथथरता का भी सोंके त देते हैं। यह एक सोंवेदनशील और भावनात्मक कहानी है, ज पाठक ों क यह याद सदलाती है सक जीवन में कु छ भी थथायी नहीों ह ता, और समय के साथ सब कु छ बदलता है। अगर आप चाहें त मैं इस कहानी के भाव ों क और गहराई से सवश्लेसषत कर सकता हाँ — या इसी सवषय पर क ई कसवता भी रच सकता हाँ! मुख्य पात्र: 👉 🧍♂️ नायक 👉 🏠 घर 👉 👥 अनुपस्थित पाररर्वाररक सदस्य सेट िंग: 🏠 एक पुराना, वीरान घर यह घर नायक का बचपन का घर है, ज कभी गमणज शी, पररवार और याद ों से भरा हुआ था। अब यह खाली और शाोंत खड़ा है, इसके कमरे और चौखटे सुनसान हैं — वही “सूने चौखटे” ज इस कहानी का शीषणक बनते हैं। 🕰️ कालगत पररवेश (Temporal Setting) कहानी वतणमान में घसटत ह ती है, लेसकन इसमें अतीत की यादें और फ्लैशबैक भी शासमल हैं।.
अतीत और वतणमान के बीच का सवर ध — एक जीवोंत घर और उसकी वतणमान वीरानी — ही इस कथा की भावनात्मक धुरी है। 🌫️ भावनात्मक पररदृश्य (Emotional Landscape) यह पररवेश के वल भौसतक नहीों है — यह मानससक भी है। घर एक रूपक बन जाता है, ज दशाणता है: अके लापन ख ना समय का प्रवाह ररश्त ों की अक्तथथरता िीम और प्रतीक: 🎭 िीम्स (वर्वर्यर्वस्तु) अथिावयत्व (जीर्वन की नश्वरता) o सब कु छ बदलता रहता है—घर, ररश्ते, यहााँ तक सक यादें भी। यह कहानी हमें क मलता से याद सदलाती है सक जीवन में कु छ भी थथायी नहीों ह ता। अके लापन और स्मृवत o नायक जब अपने बचपन के घर लौटता है, त उसे गहरे अके लेपन का अनुभव ह ता है, जहााँ के वल यादें ही मौन साथी बनकर रह जाती हैं। समय का प्रर्वाह o समय के वल पृष्ठभूसम नहीों है—यह एक ऐसी शक्ति है ज क्षरर् करती है, रूपाोंतररत करती है और दू री पैदा करती है। अतीत की खुशी और वतणमान की वीरानी के बीच का सवर ध इस कहानी का भावनात्मक कें द्र है। खालीपन और आत्मवचिंतन घर की भौसतक वीरानी नायक के भीतर के खालीपन क दशाणती है, ज उसे आत्ममोंथन की ओर ले जाती है। 🧍 प्रतीक.
चौखटे o ये कहानी का शीषणक और भावनात्मक कें द्र हैं। ये प्रतीक हैं: o अतीत और वतणमान के बीच की दहलीज़ o उन ल ग ों की अनुपक्तथथसत ज कभी इस थथान क जीवोंत बनाते थे o स्मृसतय ों की नाज़ुकता पुराना घर o यह के वल एक थथान नहीों, बक्ति एक पात्र की तरह कायण करता है। यह दशाणता है: o स्मृसतय ों की कसक o भावनात्मक क्षय o पररवतणन का मौन साक्षी खाली कमरे ये जगाते हैं: ख ई हुई बातचीतें हाँसी की गूोंज समय और अनुपक्तथथसत से उपजा खालीपन भार्वनात्मक प्रभार्व : 💔 भार्वनात्मक प्रभार्व (Emotional Resonance) चुभती हुई स्मृवतयााँ (Nostalgia with a sting): जब नायक अपने बचपन के घर लौटता है, त याद ों की बाढ़ आ जाती है। लेसकन सुकू न की बजाय, उसे सन्नाटा और खालीपन समलता है। यह सवर धाभास गहरी भावनात्मक क्तखोंचाव पैदा करता है। अके लापन एक जीर्विंत उपस्थिवत के रूप में (Loneliness as a living presence): पाररवाररक सदस् ों की अनुपक्तथथसत के वल दजण नहीों ह ती — वह महसूस ह ती है। खाली चौखटे और कमरे उन ररश्त ों के प्रतीक बन जाते हैं ज कभी थे, लेसकन अब नहीों हैं।.
वचिंतन और अथिावयत्व (Reflection and impermanence): पाठक ों क क मलता से यह याद सदलाया जाता है सक जीवन में कु छ भी थथायी नहीों है। यह कहानी इस सच्ाई क सचल्लाकर नहीों कहती — यह उसे फु सफु साकर कहती है, घर की खाम शी क ब लने देती है। सार्वषभौवमक पहचान (Universal identification): पात्र ों के नाम न ह ने के बावजूद, भावनाएाँ सावणभौसमक हैं। ज क ई भी अपने अतीत की सकसी जगह पर लौटा है और बदलाव का ब झ महसूस सकया है, वह इस नायक की यात्रा में खुद क देख सकता है। वनष्कर्ष: पररर्वतषन की स्वीकृ वत: नायक खालीपन से लड़ता नहीों है — वह उसे आत्मसात कर लेता है। यही स्वीकृ सत इस कहानी का भावनात्मक चरम सबोंदु बन जाती है। अथिावयत्व की सच्चाई: कहानी इस समझ के साथ समाप्त ह ती है सक कु छ भी थथायी नहीों ह ता — न घर, न ररश्ते, और न ही यादें अपने पूर्ण रूप में। प्रतीकात्मक समापन: “सूने चौखटे” यथावत रहते हैं — वे उस बीते समय के मौन साक्षी हैं। वे सुकू न नहीों देते, लेसकन स्पष्टता ज़रूर देते हैं। SIVAGOMATHI V 25abph030 I BSC PHY.